Bhagavad Gita – १८ अध्यायों का सरल हिंदी सारांश
Chapter 1: अर्जुनविषादयोग
Bhagavad Gita Chapter 1 summary Hindi
यह अध्याय युद्धभूमि में अर्जुन के मानसिक द्वंद्व को दर्शाता है। जब अर्जुन अपने ही सगे-संबंधियों को सामने युद्ध के लिए खड़े देखता है, तो वह मोह और शोक में पड़ जाता है और अपना धनुष गांडीव त्याग देता है। यह अध्याय हमें मानसिक विषाद से उत्पन्न निर्णयहीनता को दर्शाता है।
प्रमुख श्लोक:
द्रष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥ (1.2)
सिध्दिर्भवति कर्मजा – निष्काम कर्म का आरंभ यहीं से होता है।
Chapter 2: सांख्ययोग
Bhagavad Gita Chapter 2 summary Hindi
यह अध्याय भगवद् गीता का मूल है, जिसमें श्रीकृष्ण ने आत्मा की अमरता, कर्तव्य का पालन और निष्काम कर्म की महत्ता पर प्रकाश डाला है। यह अध्याय अर्जुन को कर्म के लिए प्रेरित करता है।
प्रमुख श्लोक:
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥ (2.12)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥ (2.47)
Chapter 3: कर्मयोग
Bhagavad Gita Chapter 3 summary Hindi
कर्म का अर्थ है – निःस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों को निभाना। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि कर्म से ही जीवन चलता है और निष्काम कर्म से मुक्ति प्राप्त होती है। यह अध्याय गृहस्थ जीवन में रहते हुए धर्म का पालन करने का संदेश देता है।
प्रमुख श्लोक:
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर॥ (3.9)
कर्मणा जायते जन्तु: – यह गीता का कर्मयोग का सार है।
Chapter 4: ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
Bhagavad Gita Chapter 4 summary Hindi
श्रीकृष्ण ज्ञानयोग और कर्मसंन्यास की व्याख्या करते हैं। वे बताते हैं कि कैसे आत्मज्ञान से व्यक्ति कर्मों के बंधन से मुक्त हो सकता है। भगवान यह भी कहते हैं कि वे समय-समय पर धर्म की रक्षा के लिए अवतरित होते हैं।
प्रमुख श्लोक:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ (4.7)
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ (4.8)
श्रद्धावाँ लभते ज्ञानं – श्रद्धा, संयम और भक्ति से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
Chapter 5: संन्यासयोग
Bhagavad Gita Chapter 5 summary Hindi
इस अध्याय में श्रीकृष्ण कर्मयोग और संन्यास के बीच अंतर स्पष्ट करते हैं। वे बताते हैं कि कर्मयोगी वही फल प्राप्त करता है जो संन्यासी करता है, लेकिन वह बिना संसार त्यागे जीवन के परम लक्ष्य को पा सकता है।
प्रमुख श्लोक:
योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते॥ (5.7)
न कर्मणां अनारम्भात् नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते – निष्काम कर्म ही संन्यास का श्रेष्ठ स्वरूप है।
Chapter 6: ध्यान योग
Bhagavad Gita Chapter 6 summary Hindi
इस अध्याय में श्रीकृष्ण ध्यानयोग की महत्ता बताते हैं। आत्म-संयम, एकाग्रता और ध्यान से आत्म-साक्षात्कार का मार्ग प्रशस्त होता है। श्रीकृष्ण योगी को तपस्वियों, ज्ञानियों और कर्मियों से भी श्रेष्ठ बताते हैं। इस अध्याय में अंततः भक्तियोग का बीजारोपण भी होता है।
प्रमुख श्लोक:
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः॥ (6.47)
Chapter 7: ज्ञान-विज्ञान योग
Bhagavad Gita Chapter 7 summary Hindi
यह अध्याय परमात्मा के ज्ञान एवं विज्ञान का वर्णन करता है। भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि कैसे वे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार सभी उन्हीं की शक्तियाँ हैं। यह अध्याय अद्वैतवाद और भक्ति का सामंजस्य स्थापित करता है।
प्रमुख श्लोक:
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥ (7.19)
Chapter 8: अक्षर ब्रह्म योग
Bhagavad Gita Chapter 8 summary Hindi
इस अध्याय में अर्जुन के प्रश्न पर श्रीकृष्ण जीवन, मृत्यु और मोक्ष के रहस्यों को उजागर करते हैं। मृत्यु के समय भगवद्भाव में जो रहता है, उसे अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति होती है। यह अध्याय “मृत्यु के समय स्मरण की महत्ता” को बताता है।
प्रमुख श्लोक:
अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः॥ (8.5)
Chapter 9: राजविद्या राजगुह्य योग
Bhagavad Gita Chapter 9 summary Hindi
इस अध्याय में श्रीकृष्ण भक्ति मार्ग की महिमा बताते हैं। यह अध्याय ‘राजविद्या’ (सर्वश्रेष्ठ ज्ञान) और ‘राजगुह्य’ (गोपनीयतम ज्ञान) कहलाता है। भगवान कहते हैं – मैं भक्त का विनाश नहीं करता, बल्कि उसकी सदैव रक्षा करता हूँ।
प्रमुख श्लोक:
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥ (9.22)
Chapter 10: विभूति योग
Bhagavad Gita Chapter 10 summary Hindi
इस अध्याय में श्रीकृष्ण अपनी दिव्य विभूतियों (शक्तियों) को वर्णित करते हैं। वे बताते हैं कि समस्त विलक्षणता, तेज, बल और ज्ञान – सब उन्हीं से उत्पन्न हैं। यह अध्याय भक्ति की पुष्टि करता है।
प्रमुख श्लोक:
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥ (10.20)
Chapter 11: विश्वरूपदर्शन योग
Bhagavad Gita Chapter 11 summary Hindi
यह अध्याय गीता का सबसे विस्मयकारी और शक्तिशाली अध्याय है। श्रीकृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हैं। यह दृश्य इतना प्रभावशाली होता है कि अर्जुन भय और भक्ति से अभिभूत हो उठते हैं।
प्रमुख श्लोक:
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः॥ (11.32)
Chapter 12: भक्ति योग
Bhagavad Gita Chapter 12 summary Hindi
इस अध्याय में श्रीकृष्ण ‘साकार’ और ‘निर्गुण’ उपासना में श्रेष्ठ कौन है, इस पर विचार रखते हैं। वह बताते हैं कि ईश्वर की भक्ति सरल और सुलभ है – सच्चे हृदय से भक्त जो भी अर्पित करता है, वह प्रभु को स्वीकार्य होता है।
प्रमुख श्लोक:
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥ (12.17)
Chapter 13: क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग
Bhagavad Gita Chapter 13 summary Hindi
इस अध्याय में ‘शरीर’ को क्षेत्र और ‘आत्मा’ को क्षेत्रज्ञ कहा गया है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि आत्मज्ञान, विनम्रता, क्षमा, अपरिग्रह जैसे गुणों से ही व्यक्ति सच्चे ज्ञान को प्राप्त करता है।
प्रमुख श्लोक:
क्षेत्रं क्षेत्रज्ञं च एवम् मन्ति विदः।
एतज्ज्ञानं मतं मे तत् अज्नानं यदन्यथा॥ (13.2)
Chapter 14: गुणत्रयविभाग योग
Bhagavad Gita Chapter 14 summary Hindi
इस अध्याय में तीन गुणों – सत्त्व, रजस् और तमस् – की व्याख्या की गई है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि यह सृष्टि त्रिगुणात्मक है और आत्मा इनसे ऊपर उठकर ही मुक्त होती है।
प्रमुख श्लोक:
गुणानेतानतीत्य त्रीन देही देहसमुद्भवान्।
जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते॥ (14.20)
Chapter 15: पुरुषोत्तम योग
Bhagavad Gita Chapter 15 summary Hindi
यह अध्याय परमपुरुष ‘पुरुषोत्तम’ के ज्ञान से संबंधित है। संसार को एक उल्टे वृक्ष के रूप में दर्शाकर श्रीकृष्ण बताते हैं कि जड़ और शाखाएँ मायिक हैं – केवल भगवान ही शाश्वत हैं।
प्रमुख श्लोक:
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्॥ (15.1)
Chapter 16: दैवासुर सम्पद्विभाग योग
Bhagavad Gita Chapter 16 summary Hindi
इस अध्याय में दो प्रकार की प्रवृत्तियों का वर्णन है – दैवी (ईश्वरीय) और आसुरी (राक्षसी)। दैवी गुण मोक्ष की ओर ले जाती है, जबकि आसुरी प्रवृत्तियाँ बंधन और विनाश का कारण बनती हैं।
प्रमुख श्लोक:
अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्॥ (16.1)
Chapter 17: श्रद्धात्रयविभाग योग
Bhagavad Gita Chapter 17 summary Hindi
इस अध्याय में श्रद्धा के तीन प्रकार – सात्त्विक, राजसिक और तामसिक – बताए गए हैं। आहार, यज्ञ, तप, दान सब इन गुणों के अनुसार भिन्न-भिन्न परिणाम देते हैं। यह अध्याय जीवनशैली के शुद्धिकरण की दिशा दिखाता है।
प्रमुख श्लोक:
श्रद्धया देयम् – सत्त्वगुणी श्रद्धा मोक्षमार्ग में सहायक होती है।
Chapter 18: मोक्षसंन्यास योग
Bhagavad Gita Chapter 18 summary Hindi
यह अंतिम अध्याय समस्त गीता का सार है। श्रीकृष्ण पुनः निष्काम कर्म, भक्ति, और मोक्ष के मार्ग को पुष्ट करते हैं। वे अर्जुन से कहते हैं – तू मेरा प्रिय है, इसलिए मेरा यह अंतिम उपदेश सुन:
प्रमुख श्लोक:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥ (18.66)
🕉️ सम्पूर्ण भगवद गीता सारांश (Final Summary)
भगवद गीता न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह जीवन जीने की एक दिव्य कला सिखाने वाली अमूल्य शिक्षाओं का संग्रह है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से सम्पूर्ण मानवता को यह उपदेश दिया कि जीवन में धर्म, कर्म, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य कैसे संतुलित रूप से अपनाया जा सकता है।
गीता के 18 अध्याय हमें निम्नलिखित प्रमुख मार्गों की ओर प्रेरित करते हैं:
- निष्काम कर्म का अभ्यास करें – फल की इच्छा से रहित होकर कर्म करें।
- आत्मा की अमरता को समझें – शरीर नश्वर है, आत्मा अजर-अमर है।
- भक्ति योग और ज्ञान योग के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति संभव है।
- सात्त्विक जीवन को अपनाएं – जिसमें पवित्रता, संयम और सेवा हो।
- त्रिगुणात्मक स्वभाव को समझकर आत्मविकास करें – रजस, तमस और सत्त्व गुण के प्रभाव से ऊपर उठें।
- ईश्वर को समर्पण करें – “सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज” का पालन करें।
📿 समर्पण मंत्र (Final Shloka)
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥ (अध्याय 18, श्लोक 66)
“सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, भय मत करो।”
🙏 भगवद गीता केवल युद्धभूमि की गाथा नहीं है, बल्कि यह हमारे अंदर चल रही धर्म और अधर्म की अंतर्ज्ञानात्मक लड़ाई की दिशा दिखाने वाला प्रकाशस्तंभ है। यदि इसे अपने जीवन में आत्मसात कर लिया जाए, तो जीवन का हर पहलू – भौतिक, मानसिक, और आत्मिक – समृद्ध और शांतिपूर्ण हो सकता है।