भगवद गीता के 15 प्रसिद्ध श्लोक | जीवन को बदलने वाले गीता उपदेश
✨ परिचय – भगवद गीता का सार
भगवद गीता न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है बल्कि एक जीवन मार्गदर्शक है। यह 700 श्लोकों का गूढ़ ज्ञान है जो अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण के बीच संवाद के रूप में प्रस्तुत हुआ। इसमें कर्म, भक्ति, ज्ञान और योग जैसे चार मुख्य मार्गों को समझाया गया है। गीता हमें सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी धर्म और कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए।
📚 15 प्रसिद्ध भगवद गीता श्लोक और उनके अर्थ
1. कर्म पर अधिकार (अध्याय 2, श्लोक 47)
श्लोक:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
अर्थ:
हमें केवल कर्म करने का अधिकार है, फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। निष्काम भाव से कार्य करो।
2. धर्म की रक्षा (अध्याय 4, श्लोक 7-8)
श्लोक:
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥”
अर्थ:
जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं प्रकट होता हूँ।
3. स्वधर्म श्रेष्ठ (अध्याय 3, श्लोक 35)
श्लोक:
“श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥”
अर्थ:
अपना धर्म चाहे दोषपूर्ण हो, फिर भी श्रेष्ठ है। परधर्म का पालन भय लाता है।
4. आत्मा अजर-अमर (अध्याय 2, श्लोक 20)
श्लोक:
“न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।”
अर्थ:
आत्मा का न तो जन्म होता है, न मृत्यु। वह शाश्वत और अविनाशी है।
5. मन ही मित्र और शत्रु (अध्याय 6, श्लोक 5)
श्लोक:
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥”
अर्थ:
स्वयं का उद्धार स्वयं करें। मन ही मित्र है और मन ही शत्रु।
6. भक्ति का महत्व (अध्याय 9, श्लोक 22)
श्लोक:
“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥”
अर्थ:
जो मुझमें लीन होकर भक्ति करते हैं, उनके योग-क्षेम की जिम्मेदारी मैं लेता हूँ।
7. समत्व योग कहलाता है (अध्याय 2, श्लोक 48)
श्लोक:
“योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥”
अर्थ:
फल की चिंता त्यागकर समत्व से कर्म करो। यही योग है।
8. आत्मज्ञान का महत्व (अध्याय 4, श्लोक 38)
श्लोक:
“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति॥”
अर्थ:
इस संसार में ज्ञान से बढ़कर कोई पवित्र वस्तु नहीं है।
9. हर जीव में परमात्मा (अध्याय 10, श्लोक 20)
श्लोक:
“अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥”
अर्थ:
मैं सभी जीवों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं ही उनका आदि, मध्य और अंत हूँ।
10. सच्चा भक्त कौन? (अध्याय 12, श्लोक 15)
श्लोक:
“यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः॥”
अर्थ:
जो व्यक्ति दूसरों को कष्ट नहीं देता और स्वयं भी किसी से विचलित नहीं होता, वह मुझे प्रिय है।
11. विनाश का आरंभ मोह से होता है (अध्याय 2, श्लोक 62-63)
श्लोक:
“क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥”
अर्थ:
इच्छा से क्रोध, क्रोध से भ्रम, भ्रम से स्मृति का ह्रास, और अंततः व्यक्ति का नाश होता है।
12. संतुलन से जीवन (अध्याय 6, श्लोक 16-17)
श्लोक:
“युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥”
अर्थ:
नियमित आहार, निद्रा, और क्रियाओं से योगी दुखों से मुक्ति पाता है।
13. जो हुआ, अच्छा हुआ (श्रीकृष्ण उपदेश)
अनौपचारिक उद्धरण:
“जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह भी अच्छा हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा।”
अर्थ:
सबकुछ भगवान की इच्छा से होता है, इसलिए चिंता न करें।
14. श्रद्धा और विश्वास (अध्याय 17, श्लोक 3)
श्लोक:
“सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः॥”
अर्थ:
प्रत्येक व्यक्ति की श्रद्धा उसके स्वभाव के अनुसार होती है, जैसा विश्वास, वैसा जीवन।
15. अंत में मेरी शरण लो (अध्याय 18, श्लोक 66)
श्लोक:
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥”
अर्थ:
सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा।
📌 निष्कर्ष:
भगवद गीता का ज्ञान हर युग में प्रासंगिक है। यह न केवल धार्मिक ग्रंथ है बल्कि एक व्यवहारिक जीवन मार्गदर्शक है जो हमें सत्य, धर्म, और निष्ठा के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है। उपर्युक्त श्लोकों को अपने जीवन में उतारकर हम अपने विचार, कर्म और जीवन शैली में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।