महाभारत का शकुनि – कुरुक्षेत्र युद्ध का चतुर योजनाकार
महाभारत का शकुनि – हस्तिनापुर की राजनीति का सबसे चतुर खिलाड़ी
सिंहासन के पीछे की छाया
जब हम महाभारत की बात करते हैं, तो अक्सर पांडवों, कौरवों या श्रीकृष्ण के दिव्य मार्गदर्शन पर ध्यान जाता है। लेकिन परछाइयों में एक ऐसा व्यक्ति था, जिसकी बुद्धि और राजनीति ने पूरे राज्य का भविष्य तय किया — शकुनि, कौरवों के मामा। अपनी तीव्र बुद्धिमत्ता, असीम चालाकी और राजनीतिक कौशल के कारण शकुनि महाभारत के सबसे रहस्यमय और विवादित पात्रों में से एक रहे।
कौन था शकुनि?
गांधार राज्य के राजकुमार शकुनि, गांधारी के भाई और धृतराष्ट्र के साले थे। दिखने में शांत, लेकिन मन में गहरी प्रतिशोध की ज्वाला लिए हुए, शकुनि का हर कदम सोचा-समझा होता था। उनकी मुस्कान में जितनी मिठास थी, शब्दों में उतना ही जहर।
वह प्रतिज्ञा जिसने सब बदल दिया
कथाओं के अनुसार शकुनि के परिवार को हस्तिनापुर द्वारा अन्याय झेलना पड़ा। इसी अपमान और पीड़ा ने उन्हें एक वचन लेने पर मजबूर किया — कि वे कौरव वंश को भीतर से नष्ट करेंगे। कुरुक्षेत्र का युद्ध मैदान में लड़ा गया, लेकिन असली युद्ध शकुनि के दिमाग में शुरू हो चुका था।
पासों का खेल – महाभारत का निर्णायक मोड़
महाभारत का सबसे चर्चित प्रसंग है पासों का खेल, जिसमें शकुनि की धूर्त चालों ने पांडवों को वनवास दिला दिया। लोडेड पासों के सहारे, उन्होंने दुर्योधन की महत्वाकांक्षा और धृतराष्ट्र की कमजोरियों का फायदा उठाया। इसी खेल में द्रौपदी का अपमान हुआ और धर्मयुद्ध की नींव रखी गई।
मनोवैज्ञानिक युद्ध के महारथी
शकुनि तलवार से नहीं, दिमाग से लड़ते थे। वे इंसानों की कमजोरियों — लालच, घमंड और भय — को बखूबी समझते थे और उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते थे। चाहे वह दुर्योधन को पांडवों के खिलाफ भड़काना हो या धृतराष्ट्र के कान में जहर घोलना, शकुनि हर चाल लंबे समय की योजना से चलते थे।
खलनायक या परिस्थितियों का शिकार?
इतिहास में शकुनि को खलनायक माना गया, लेकिन कुछ लोग उन्हें सिर्फ एक प्रतिज्ञा निभाने वाला मानते हैं। उनके लिए कुरु वंश का विनाश न्याय था, न कि विश्वासघात। उनका चरित्र सिखाता है कि राजनीति में नैतिकता अक्सर दृष्टिकोण पर निर्भर करती है।
आधुनिक समय में शकुनि की छवि
आज भी “शकुनि” शब्द चालाकी और राजनीतिक साज़िश का प्रतीक है। उनकी कहानी हमें आगाह करती है कि छिपा हुआ द्वेष और महत्वाकांक्षा, चाहे अतीत का साम्राज्य हो या आज की सरकारें, दोनों को नष्ट कर सकती है।
निष्कर्ष
महाभारत का शकुनि सिर्फ एक सहायक पात्र नहीं था — वह एक कठपुतली संचालक था, जो पर्दे के पीछे से पूरी कहानी की दिशा तय कर रहा था। उसका नाम आज भी हमें याद दिलाता है कि सबसे खतरनाक योद्धा वह होता है, जो कभी हथियार नहीं उठाता।