भीष्म पितामह का व्रत: त्याग, धर्म और वचनबद्धता की अद्भुत कथा
🔱 भीष्म पितामह का व्रत
महाभारत में अनेक महान पात्र हैं, लेकिन भीष्म पितामह का स्थान सबसे ऊँचा माना जाता है। उन्होंने जो प्रतिज्ञा ली थी, वह न केवल भारतीय पौराणिक इतिहास में अद्वितीय है, बल्कि हर युग के मनुष्य के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
👑 1. जन्म और बाल्यकाल
भीष्म पितामह का जन्म गंगा और राजा शांतनु के पुत्र के रूप में हुआ था। उनका वास्तविक नाम देवव्रत था। वह बाल्यकाल से ही वेदों, शास्त्रों, अस्त्र-शस्त्र और राजनीति में निपुण थे। गंगा माता उन्हें बचपन में लेकर चली गई थीं और ब्रह्मऋषियों से शिक्षा दिलवाई थी।
💍 2. शांतनु और सत्यवती का विवाह संकट
राजा शांतनु एक मल्लाह कन्या सत्यवती से विवाह करना चाहते थे। लेकिन सत्यवती के पिता ने शर्त रखी कि सत्यवती से उत्पन्न संतान ही राजा बनेगी। देवव्रत को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपने पिता के प्रेम को पूर्ण करने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य और राजसिंहासन का त्याग करने की प्रतिज्ञा ली।
✋ 3. भीष्म प्रतिज्ञा और अमरत्व
जब देवव्रत ने यह कठोर प्रतिज्ञा ली, तो आकाश गूंज उठा और देवताओं ने उन्हें ‘भीष्म’ की उपाधि दी, क्योंकि उन्होंने अत्यंत भीषण प्रतिज्ञा ली थी। पितामह शांतनु ने उन्हें अमरत्व का वरदान भी दिया — कि उनकी मृत्यु उनकी इच्छा के बिना नहीं हो सकती।
⚔️ 4. धर्मयुद्ध में व्रत की दृढ़ता
महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह कौरवों के सेनापति बने। वह जानते थे कि धर्म पांडवों के साथ है, लेकिन उन्होंने अपने वचन के प्रति निष्ठावान रहते हुए कौरवों की ओर से युद्ध किया। यही उनकी धर्म और वचन के प्रति दृढ़ता को दर्शाता है।
🛏️ 5. शरशैया पर योगबल
जब शिखंडी के माध्यम से अर्जुन ने उन्हें बाणों से बींध दिया, तो वह शरशैया (बाणों की शय्या) पर लेट गए। उन्होंने अपनी इच्छा से तब तक प्राण नहीं त्यागे जब तक सूर्य उत्तरायण नहीं हो गया। यह उनकी योगिक शक्ति और इच्छा से मृत्यु को दर्शाता है।
🧘♂️ 6. सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
भीष्म पितामह का व्रत हमें सिखाता है कि वचन का पालन कितना मूल्यवान होता है। चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर हमने कोई संकल्प लिया है, तो उसे निभाना ही वास्तविक धर्म है। यह कथा त्याग, संयम, और सत्यनिष्ठा का प्रतीक है।
🕉️ 7. आधुनिक युग में प्रासंगिकता
आज जब जीवन में निर्णय अक्सर स्वार्थ और सुविधा के आधार पर लिए जाते हैं, भीष्म प्रतिज्ञा हमें याद दिलाती है कि सच्चा धर्म क्या है — अपने वचनों पर अडिग रहना और दूसरों की भलाई के लिए अपने हितों का त्याग कर देना।
🔚 निष्कर्ष
भीष्म पितामह का व्रत न केवल एक पौराणिक कथा है, बल्कि एक जीवंत आदर्श है। यह भारत की संस्कृति और धर्म के मूल्यों को उजागर करता है — जहाँ वचन, त्याग और धर्म सबसे ऊपर हैं।